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Monday, June 8, 2009

एक के तीन

अकेला अशोक जडेजा ही क्यों, कोई ऐसा बता दो जो हमें न ठग रहा हो।
कोई कम लालच नहीं था ,एक के तीन ही क्यों, चार गुना तक का लालच था ।
आ गए लपेट में। आज लालची कौन नहीं है, जिसके पास दो पैसे हैं वह
चाहता ही है कि चार हों।
कोई शेयर बाज़ार में लगता है ,कोई सट्टे बाजी
में लगाता है,और भी बहुत जगह हैं पैसे की ,आजकल जब से उदारीकरण चल
रहा है तब से बहुत सी कम्पनियां ऐसी आ गई हैं जो हाईटेक तरीके से ठग
रहीं हैं इसको मलि्टनेटवर्किंग का नाम दिया हुआ है, कोई एलोवेरा जूस या एप्पल जूस
बेच रही है कोई घरेलू सामान बेच रही है ,पहले-पहले ज्यादातर कम्पनियां
केवल पैसा लेकर सदस्यों की चेन बनाने को कह कर कई गुना कमाने को कहती
थी । इनके ठगने में भी बहुत लोग आते हैं और इनका बिजनेस भी करोड़ों में होगा
पर क्योंकि सरकार ने इन्हें रजिस्टर्ड कर रखा है इसलिए ये आजादी से काम कर रहीं
हैं। ये अधिकतर विदेशी होती हैं।
वैसे भी भारतीय समाज अगर ठगा न जाए तो शायद जी ही न पाए हमें बचपन
से ठगने का और ठगने(ठगे जाने) का प्रशिक्षण ,जाने-अनजाने मिलता रहता है
कोई ऐसी जगह बता दो जहाँ हम न ठगे जाते हों ।

चाहे एक के तीन करने के लिए ठगे जायें या केवल आश्वाशन पाकर ठगे जायें ।
अरबों रुपये का मुनाफा कम्पनियां बिना ठगे नहीं कमा रहीं। अगर ये अपना मुनाफा
कुछ कम कर दें तो कुछ महंगाई कम हो जाए ।
सबसे खरी बात, कि लोकतंत्र के नाम पर हम पिछले साठ साल से ठगे जा रहे हैं ।

1 comment:

  1. शंकर जी बहुत पते की बात कही है आपने ...हमारी ही कमजोरियों का फायदा शातिर लोग उठाते हैं...अशोक जडेजा को चने के झाड़ पर चढाने वाले हम ही तो हैं...ये ही लोग जो आज उसे कोस रहे हैं अगर वो इनके पैसे तिगुने कर देता तो गुणगान करते...
    नीरज

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