ताजा प्रविष्ठियां

Wednesday, April 8, 2009

जरनैल सिंह

पत्रकार है तो क्या हुआ,
क्या आदमी नहीं रहा….?
मंत्री है तो क्या हुआ,
व्यवस्था का चेहरा ही तो हुआ।

ये आम आदमी का जूता व्यवस्था के मुहं पर उछला है,
तो, शर्म व्यवस्था को और व्यवस्थापकों (नेताओं-अधिकारीयों)
को आनी चाहिए कि उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा की।
आम आदमी की नजरों में वे गिर चुके हैं ।
एक पत्रकार की कलम शर्म वालों के लिए होती है,
बेशर्मों पर कोई असर नहीं होता।

1 comment:

  1. जो गल्‍ती कर रहे हैं ... उन्‍हें देखकर सभी गल्‍ती करना शुरू कर दें ... देश की जो इज्‍जत बची है ... वह भी समाप्‍त।

    ReplyDelete

हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें