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Monday, March 23, 2009

वंदेमातरम

वन्देमातरम - इन्कलाब जिंदाबाद।
शहीदे-आजम भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को कोटि-कोटि नमन,
जिस उम्र में वह अंग्रेजों से लड़ने निकल पड़े थे,
उन संस्कारों को,उस शिक्षा को,उन माता-पिता,उस मिटटी को शत-शत नमन।

एक आज का युवा है जो नशे-वासना में स्वयं को तो भूला ही ।
अपने संस्कार,अपनी मिटटी, माता-पिता,वतन और भूल गया अपनी हस्ती भी॥


फ़िर भी ऐसे बहुत लोग हैं जिन्होंने अभी शहीदों की यादों को नहीं भुलाया।
नहीं भूले संस्कार,अपनी मिटटी और माता-पिता,गुलाम मानसिकता को नहीं अपनाया॥

उन लोगों को भी कोटि-कोटि साधुवाद व नमन।

१५ अगस्त १९४७ को हम स्वतंत्र तो हुए,पर केवल शासक बदले।

1 comment:

  1. वो अंग्रेजों से ही नहीं लड़ रहा था बल्कि उन लोगों से भीलड़ रहा था जिन्हें अपने संस्कारोंके अलावा कुछ नहीं दिखता। भगतसिंह का कहना था कि दुनियामें जोभी प्रगतिशील है वो हमारा है और जो भी अन्यायपूर्ण है चाहे वो कैसी पुरानी परंपरा हो, उससे हमारी शत्रुता है। वंदे मातरम ब्रिगेड से यही उनका विरोध है

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