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Sunday, March 22, 2009

कलियुग.....कब होगी तेरी इति

हे कलि के युग,अब तो बता दे, कब होगी तेरी अति।
और क्या-क्या करवाएगा समाज में, कितनी करेगा और क्षति॥
भ्रष्टाचार,अन्याय,अत्याचार,अनैतिकता की पराकाष्ठा।
कब पाप का घड़ा भरेगा,गागर छलकेगी, कैसे होगी तेरी इति॥
हे कलि के युग…......

वीर भोग्या वसुंधरा और धीर ने धीरज धरा !
वीर की नैतिकता  भौतिकता में बदली धीर ने धीरज धरा ,
हे कलि के युग तेरा मन फिर भी न भरा;
मानव मन छोड़ रहा आस्था !  
और कितना समय है तेरा ? और बढ़ा अपनी गति ,
हे कलि के युग .........    
जा शीघ्र जा कुछ तो रहने दे नवयुग आने को ; सभी को न खा !
नवयुग में नव जीवन को कदाचित मिल भी जाए स्वच्छ जल और हवा 
तो भी पड़ती है स्वस्थ सबल संस्कारित उन्नत बीज की आवश्यकता ,
अभी तो संस्कार, केवल छोड़े हैं मानव ने, कहीं भूल ही न जाए ,
क्योंकि मरी गई है मति ।
हे कलि के युग ………
जाना तो है सभी को, अमर कोई भी नहीं ,जाना है तुझे भी ,
अमर है तो स्वयं अमरत्व , या फिर काल की गति 

इतना उच्श्रंखल भी न हो कि मानव भी भूल ही जाए मानवता,
मनुष्य कम ही हैं अब संसार में कौन करेगा तेरी सदगति !
हे कलि के युग अब तो बता दे, कब होगी तेरी अति।
और क्या-क्या करवाएगा समाज में, कितनी करेगा और क्षति॥

1 comment:

  1. कब पाप का घड़ा भरेगा,गागर छलकेगी, कैसे होगी तेरी इति॥
    बहुत सुंदर...

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