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Sunday, February 22, 2009

कांटे

"कांटे न हों तो गुलाब का क्या होगा"?
कोई भी झपट कर तोड़ लेगा,
काँटों के भय से ही तो,
जो उसकी और बढेगा,
वो हाथ, "मर्यादित होगा"
वह झपटेगा नहीं; "प्यार से तोड़ेगा
और सहेज लेगा"।

4 comments:

  1. "कांटे न हों तो गुलाब का क्या होगा"?
    सुंदर अभिव्यक्ति ,अच्छा लगा पढ़कर !

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!बधाई।

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  3. बहुत बेहतरीन...

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