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Monday, February 9, 2009

चक्रम

चुनाव
लो भाई आ गया चुनाव का मौसम, बस घोषणा होनी बाकि है।
एक बार फ़िर हम बेवकूफ बन कर अपनी पीठ थपथपाएंगे प्रचार-
पार्टी वाले,(कार्यकर्त्ता कहें या कर्मचारी) खायेंगे-पियेंगे मौज
करेंगे…. और क्या।

चांस
चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने में हाई-कमान जितना सोचता है
उतना हम वोट देने में नही सोचते । जबकि हाई-कमान के पास तो
टिकट कैंसल का चांस होता है ।
काश हमारे पास भी ऐसा ही चांस होता। तो शायद भ्रष्टाचार
कुछ कम होता।


कल्याण सिंह
लौट के बुद्धू घर आए थे
पर
फ़िर बुद्धू(अति महत्वाकांक्षी) बन कर चले गए।

विवादित ढांचा
राम मन्दिर या बाबरी मस्जिद उसे क्या कहें(जो अब नही है)
कुछ समझ न आए , क्योंकि मैंने सुना है की जहाँ
नमाज अता न हो रही हो उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता,
और मन्दिर तो बाबर ने सदियों पहले तोड़ दिया था।
तो……
ये केवल जिद तो नहीं।( दोनों समुदायों की)

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