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Sunday, January 4, 2009

राष्ट्रीयता

राष्ट्रीयता
हॉकी की जगह क्रिकेट हो राष्ट्रीय खेल।
( पटौदी ने कहा)
"शायद तब हॉकी के दिन सुधर जायें" ।
क्योंकि हमारे सभी राष्ट्रीय प्रतीक-चिन्ह इत्यादि उपेक्षित
हैं। जैसे राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते इसका उल्टा ही चारों
तरफ़ दिख रहा है।
(असत्यमेव जयते) नेता से लेकर अधिकारी
तक असत्य बोल कर जनता को बेवकूफ बनाते हैं।

राष्ट्रीय झण्डे का अपमान भी न्यूज चैनल वाले दिखा ही देते हैं।
राष्ट्रीय पशु-पक्षी भी लुप्त होने के कगार पर हैं।
राष्ट्रीय त्यौहार केवल औपचारिकता तक ही सीमित हैं।
राष्ट्रीय नदी गंगा के हाल पर तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
चिंता होती है।
"सबसे बड़ी बात" राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद को या तो हँसी का विषय
बना दिया या पिछडापन और अतिवाद माना जाता है।
राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्र भाषा, राष्ट्र गीत , राष्ट्र कवि, और भी
बहुत कुछ जो अघोषित रूप से राष्ट्रीय है
शायद आने वाली पीढियां
भूल जायें।
इसलिए इन्हें बदल देना चाहिए। ( पटौदी साहब खुश हो
जायेंगे)

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